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मौन

अंतर्नाद
अंतर्नाद
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मौन था
और मौन में
निष्काम आयोजन छिपा था
एक सभा का ,
और फिर था ,
मौन ,
मुझको वो निमंत्रण
जो मिला था |
मौन भाषा कि तहों में
अनगिनत प्रश्नों के उत्तर
भी छिपे थे
किन्तु वह भी मौन धारे ही खड़े थे |
और मैं भी साथ उनके ,
मौन को खुद में समेटे ,
मौन प्रश्नों और उनके
अनकहे हर एक उत्तर में
स्वयं को ढूँढती थी ,
और मुझको फिर मिला जो
मौन था
और मौन में ……………………
हर तरफ सुनसान राहें
खाली खाली सब निगाहें ,
हर अधर पर खेलती वो मौन और बेजान आहें ,
किस तरह जीवंत होंगी
ये स्वयं से पूछती थी ,
और मुझको फिर मिला जो ,
मौन था ,
और मौन में ……………………………
महफिलों में भी स्वयं को मौन रख कर
था कहा जो सत्य वह
झूठा हुआ था
किसलिए
क्या वह अकेला पड़ गया था इसलिए
प्रश्न मुझको छल रहा था
और सच में मैं अकेले ,
प्रश्न कि गहराइयों से लड़ रहा था ,
और मुझको फिर मिला जो
मौन था
और मौन में ……………………….|

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